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एक ऐसे महाशय जो 1500 रूपए से बन गए दुनिया के मसाला किंग और 98 साल जिए

एक ऐसे महाशय जो 1500 रूपए से बन गए दुनिया के मसाला किंग और 98 साल जिए


 

देश की प्रसिद्ध मसाला कंपनी एमडीएच के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन हो गया है. वह 98 साल के थे. कुछ साल पहले चीन की रिसर्च फर्म हुरुन इंडिया ने भारतीय अमीरों की एक लिस्ट जारी की थी जिसमें धर्मपाल गुलाटी को भारत में सबसे बुजुर्ग अमीर बताया गया था.

रजनी वर्मा

नई दिल्‍ली। एमडीएच ग्रुप के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन हो गया है. उन्होंने माता चन्नन देवी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली. 98 वर्षीय महाशय धर्मपाल बीमारी के चलते पिछले कई दिनों से माता चन्नन हॉस्पिटल में एडमिट थे. गुरुवार सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्होंने सुबह 5:38 बजे अंतिम सांस ली। इससे पहले वे कोरोना से संक्रमित हो गए थे। हालांकि बाद में वे ठीक हो गए थे। महाशय धर्मपाल के निधन पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई राजनीतिक हस्तियों ने दुख जाहिर किया है. पिछले साल उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. 


ऐसा रहा महाशय धर्मपाल गुलाटी का सफर

महाशय धर्मपाल का जन्म 27 मार्च, 1923 को सियालकोट ( जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. साल 1933 में, उन्होंने 5वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ दी थी. साल 1937 में, उन्होंने अपने पिता की मदद से व्यापार शुरू किया और उसके बाद साबुन, बढ़ई, कपड़ा, हार्डवेयर, चावल का व्यापार किया.

हालांकि महाशय धर्मपाल गुलाटी लंबे वक्त ये काम नहीं कर सके और उन्होंने अपने पिता के साथ व्यापार शुरू कर दिया. उन्होंने अपने पिता की 'महेशियां दी हट्टी' के नाम की दुकान में काम करना शुरू कर दिया. इसे देगी मिर्थ वाले के नाम से जाना जाता था. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद वे दिल्ली आ गए और 27 सितंबर 1947 को उनके पास केवल 1500 रुपये थे.
महाशय जी का तांगा 


इस पैसों से महाशय धर्मपाल गुलाटी ने 650 रुपये में एक तांगा खरीदा और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड के बीच तांगा चलाया. कुछ दिनों बाद उन्होंने तांगा भाई को दे दिया और करोलबाग की अजमल खां रोड पर ही एक छोटा सी दुकान लगाकर मसाले बेचना शुरू किया. मसाले का कारोबार चल निकला और एमडीएच ब्रांड की नींव पड़ गई. आज महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) देश में मसालों का बड़ा ब्रांड है. वह मसालों के मैन्युफैक्चर, डिस्ट्रिब्यूटर और एक्सपोर्टर हैं.

पांचवीं पास सीईओ जिनकी सैलरी एफएमसीजी सेक्टर में सबसे ज्यादा थी

2016 में उन्हें 21 करोड़ रुपये से अधिक सैलरी मिली थी जो गोदरेज कंज्यूमर के आदि गोदरेज और विवेक गंभीर, हिंदुस्तान युनिलीवर के संजीव मेहता और आईटीसी के वाईसी देवेश्वर से अधिक थी. महाशियां दी हट्टी की आज दिल्ली के अलावा गुरुग्राम व नागौर में तीन-तीन फैक्ट्रियां समेत कुल 15 फैक्ट्रियां है जो देशभर में 1000 से अधिक डीलरों को सप्लाई करती हैं. कंपनी के ऑफिस दुबई और लंदन में भी हैं. कंपनी 60 से अधिक प्रोडक्ट बनाती है और यूएस, कनाडा, पूरे यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्विटजरलैंड 100 देशों को निर्यात करती है.
परिवार से जुडी यादे 

व्यापार के साथ ही उन्होंने कई ऐसे काम भी किए हैं, जो समाज के लिए काफी मददगार साबित हुए. इसमें अस्पताल, स्कूल आदि बनवाना आदि शामिल है. उन्होंने अभी तक कई स्कूल और विद्यालय खोले हैं. वे अभी तक 20 से ज्यादा स्कूल खोल चुके हैं.

सामाजिक कार्यों में रुचि

उनके घर में छह बेटियां और दो बेटे पैदा हुए. कारोबार स्थापित हुआ तो समाज उत्थान के लिए प्रयास शुरू हुए. सत्संग होने लगे. हर शनिवार को परिवार समेत ऋषिकेश जाने लगे. वहां भजन कीर्तन करते. इच्छा और बढ़ी तो जनकपुरी में माताजी के नाम पर चन्नन देवी अस्पताल बनाया. अस्पताल के साथ-साथ दिल्ली और देश में अनेक स्कूलों, आश्रमों, गुरुकुलों का निर्माण करवाया। कई गौशालाओं का संचालन किया। खास रणनीति के तहत बढ़ी उम्र के बावजूद कंपनी का खुद ब्रैंड ऐंबैसडर बने. टीवी पर खुद विज्ञापनों का प्रचार किया. 'असली मसाले सच-सच' और 'यही है असली इंडिया' डायलॉग से उन्होंने मसालों के प्रचार को अलग अंदाज में पेश किया.

अनुशासित जीवन

इस उम्र में भी वह रोज की तरह सुबह 4:45 बजे उठते थे. दशकों पुराना नियम है कि सुबह उठते ही तांबे के गिलास का पानी पीते थे. साथ में थोड़ा शहद. 5.25 बजे पार्क में पहुंचकर सैर, व्यायाम, आसन, प्राणायाम करते थे. खाने में सभी कुछ 'हल्का-फुल्का' होता था. शाम को फिर एक बार पार्क, उसके बाद हल्का खाना और 10:30 बजे बिस्तर पर. उनका कहना था कि जवान रहना है तो तीन बातों का ध्यान रखो. रोज शेव करो. एक बार दूध में मखाने जरूर डालकर पीओ और संभव हो तो बादाम के तेल की मालिश करो. बुढ़ापा पास नहीं आएगा. बैंक का चेक चाहे पांच रुपये का हो या पांच करोड़ रुपये का. वह खुद ही साइन करते थे. पूरी खरीदारी पर नजर रहती थी. वह मानते हैं कि जिंदगी मे सफल और तनावमुक्त रहने के लिए सामाजिक और धार्मिक भागीदारी जरूरी है.

दिल्ली दिल के करीब

दिल्ली हमेशा उनके दिल के करीब थी. वह कहते थे, 'दिल्ली में मैंने लंबा संघर्ष किया. दुश्वारियां झेली, लोगों के धोखे खाए और परेशानियां भी झेली. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दिल्ली ने बहुत कुछ दिया है. पैसा, शोहरत, मान-सम्मान और अपनापन सब कुछ दिल्ली ने दिया. मैं ही नहीं, पूरे परिवार को दिल्ली ने ऊंचाइयों तक पहुंचाया. पुरानी दिल्ली का वक्त तो अभी भी आंखों में तैर जाता है. वहां के लोग, तहजीब और भाषा। सबने सालों तक मुझे बांधे रखा. दिल्ली में मुकाम पाने वाले कई लोग दिल्ली को छोड़कर एनसीआर में जा बसे हैं. लेकिन हमारा पूरा परिवार आज भी दिल्ली में ही रहता है.'



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